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Roza ka Fidya kitna hai 2020 |Fidya of Roza | Fidya k masail

Roza ka Fidya kitna hai 2020

Roza ka Fidya kitna hai 2020

अस्सलामू अलैकुम – दोस्तों स्वागत है आपका इस ब्लॉग पोस्ट पर आज की पोस्ट में हम सीखने वाले हैं कि
Roza ka Fidya kitna hai 2020 । अगर आप रमज़ान का रोज़ा रखते हैं, और आप किसी दिन रोज़ा को छोड़ देते हैं तो उस रोज़े का आपको कफ़ारा देना होता है जिसको आप Fidya भी कह सकते हैं, इस पोस्ट में हम जानने वाले हैं कि रमज़ान के महीने एक रोज़ा छोड़ने के बाद Roza ka Fidya kitna hai 2020 इस पोस्ट में आपको Roza ka Fidya kitna hai 2020 के बारे में डिटेल्स में बताने वाला हूँ इस लिए आप इस पोस्ट को पूरा पढ़ें आपको Roza के Fidya के बारे में सब कुछ समझ में आ जाएगा ।

जिसको इतना बुढ़ापा हो गया कि रोज़ा रखने कि ताकत नहीं रही या ऐसा बीमार है कि अच्छा होने की उम्मीद नहीं और न Roza रखने की ताकत है तो वह roza न रखे और हर Roza के बदले एक मिसकीन को सदक़ा फ़ितरा के बराबर गल्ला दे दे या सुबह व शाम पेट भर के उसको खाना दे दें, शुरू में इसको भी Roza ka Fidya कहते हैं और अगर गल्ला के बदले में उसी कदर गल्ला की कीमत दे दे तब भी यह दुरुस्त है  । फिर अगर बाद में ताकत आ गयी या बीमारी से अच्छा हो गया तो सब रोज़े क़ज़ा रखने पड़ेंगे और जो Roza ka Fidya दिया है उसका सवाब अलग मिलेगा ।

 

Fidya of Roza - 
Roza ka Fidya kitna hai 2020

किसी के ज़िम्मे कई Roze क़ज़ा थे और वह मरते वक़्त वशीयत कर गया कि मेरे rozo के बदले Fidya of Roza दे देना, तो उसके माल मे से उसका वली यह Fidya of Roza दे दे कफन दफन और क़र्ज़ अदा करके जितना माल बचे उसकी तिहाई में से अगर सब Fidya निकल आए तो देना वाजिब होगा ।

अगर उसने वशीयत नहीं की मगर वली ने अपने माल मे से Fidya of Roza दे दिया तब भी खुदा से उम्मीद रखे कि शायद कबुल कर ले और अब रोज़ों का मूआखिजह न करेगा, और बेगैर वशीयत किए खुद मुर्दे के माल मे से Fidya of Roza देना जायज़ नहीं, इसी तरह अगर तिहाई माल से ज़्यादा हो जाए ओ बावजूद वशीयत के भी ज़्यादा देना बरदन रजामंदी सब वारिशों के जायज़ नहीं, हाँ अगर सब वरिष खुशी से राज़ी हो जाएँ तो दोनों सूरतों में Fidya of Roza देना दुरुस्त है लेकिन नाबालिग वारीश की इजाज़त का शुरू में कुछ ऐतबार नहीं है । बालिग वारीश अपना हिस्सा जुड़ा करके उसमे से दे दें तो दुरुस्त है । अगर किसी की नमाज़ क़ज़ा हो गईं हों और वशीयत करके मर गया कि मेरी नमाजों के बदले यह Fidya दे देना तो उसका भी यही हुक्म है ।

 

Fidya k masail

Fidya k masail

अब हम बात करने वाले हैं है की
Fidya k masail क्या है Fidya कितना दें वाजिब है अब हम Fidya k masail के बारे में हम जानेंगे, हर वक़्त की नमाजों का इतना Fidya है जितना एक रोज़ा का Fidya होता है उस हिसाब से दिन रात के पाँच फर्ज़ और एक वितर छः नमाजों की तरफ से एक छटांक कम पौने ग्यारह सेर गेहूं अस्सी रुपया के सेर से दे मगर अहतयातन पूरे बारह सेर दें ।

अगर किसी के ज़िम्मे ज़कात बाक़ी है अभी तक अदा नहीं की तो वशीयत कर जाने से उसका भी अदा कर देना वारिशों पर वाजिब है, और अगर वशीयत नहीं की और वारिशो ने अपनी खुशी से दे दी तो ज़कात अदा नहीं हुई । अगर वली मुर्दे की तरफ से क़ज़ा रोज़े रख ले या उसकी तरफ से नमाज़ पढ़ ले तो यह तरीका दुरुस्त नहीं यानि की उसके ज़िम्मे से न उतरेगी ।

बे वजह रामज्न शरीफ का रोज़ा छोड़ देना दुरुस्त नहीं और बड़ा गुनाह है यह न समझे की इसके बदले एक रोज़ा क़ज़ा रख लूँगा क्यूंकी हदिश शरीफ में आया है की रमज़ान के एक रोज़ा के बदले में अगर साल भर बराबर रोज़ा रखता रहे तब भी उतना सवाब न मिलेगा जितना रमानज के महीने में मितला है ।

 

तो दोस्तों आशा करता हूँ की आपको यह मसला समझ मे आया होगा ।

अगर आपको कोई मसला समझ में न आए तो अप कमेंट में पुच सकते हैं मैं आपको पूरी जानकारी दूंगा ।

 


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Posted byJM Islamic Official

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