Roza ka Fidya kitna hai 2020
जिसको
इतना बुढ़ापा हो गया कि रोज़ा रखने कि ताकत नहीं रही या ऐसा बीमार है कि अच्छा होने
की उम्मीद नहीं और न Roza रखने की
ताकत है तो वह roza न रखे और हर Roza के
बदले एक मिसकीन को सदक़ा फ़ितरा के बराबर गल्ला दे दे या सुबह व शाम पेट भर के उसको
खाना दे दें, शुरू में इसको भी Roza ka Fidya कहते हैं और अगर गल्ला के बदले में उसी कदर गल्ला की कीमत दे दे तब भी यह
दुरुस्त है । फिर अगर बाद में ताकत आ गयी
या बीमारी से अच्छा हो गया तो सब रोज़े क़ज़ा रखने पड़ेंगे और जो Roza ka
Fidya दिया है उसका सवाब अलग मिलेगा ।
Fidya of
Roza -
Roza ka Fidya kitna hai 2020
किसी
के ज़िम्मे कई Roze क़ज़ा थे और वह मरते
वक़्त वशीयत कर गया कि मेरे rozo के बदले Fidya of
Roza दे देना, तो उसके माल मे से उसका वली
यह Fidya of Roza दे दे कफन दफन और क़र्ज़ अदा करके
जितना माल बचे उसकी तिहाई में से अगर सब Fidya निकल आए तो देना वाजिब होगा ।
अगर
उसने वशीयत नहीं की मगर वली ने अपने माल मे से Fidya
of Roza दे दिया तब भी खुदा से
उम्मीद रखे कि शायद कबुल कर ले और अब रोज़ों का मूआखिजह न करेगा, और बेगैर वशीयत किए खुद मुर्दे के माल मे
से Fidya of Roza देना जायज़ नहीं, इसी तरह अगर तिहाई माल से ज़्यादा हो जाए ओ बावजूद वशीयत के भी ज़्यादा
देना बरदन रजामंदी सब वारिशों के जायज़ नहीं, हाँ अगर सब वरिष
खुशी से राज़ी हो जाएँ तो दोनों सूरतों में Fidya of Roza देना दुरुस्त है लेकिन नाबालिग वारीश की इजाज़त का शुरू में कुछ ऐतबार नहीं
है । बालिग वारीश अपना हिस्सा जुड़ा करके उसमे से दे दें तो दुरुस्त है । अगर किसी
की नमाज़ क़ज़ा हो गईं हों और वशीयत करके मर गया कि मेरी नमाजों के बदले यह Fidya
दे देना तो उसका भी यही हुक्म है ।
Fidya k masail
अगर
किसी के ज़िम्मे ज़कात बाक़ी है अभी तक अदा नहीं की तो वशीयत कर जाने से उसका भी अदा
कर देना वारिशों पर वाजिब है, और अगर
वशीयत नहीं की और वारिशो ने अपनी खुशी से दे दी तो ज़कात अदा नहीं हुई । अगर वली
मुर्दे की तरफ से क़ज़ा रोज़े रख ले या उसकी तरफ से नमाज़ पढ़ ले तो यह तरीका दुरुस्त
नहीं यानि की उसके ज़िम्मे से न उतरेगी ।
बे
वजह रामज्न शरीफ का रोज़ा छोड़ देना दुरुस्त नहीं और बड़ा गुनाह है यह न समझे की इसके
बदले एक रोज़ा क़ज़ा रख लूँगा क्यूंकी हदिश शरीफ में आया है की रमज़ान के एक रोज़ा के
बदले में अगर साल भर बराबर रोज़ा रखता रहे तब भी उतना सवाब न मिलेगा जितना रमानज के
महीने में मितला है ।
तो
दोस्तों आशा करता हूँ की आपको यह मसला समझ मे आया होगा ।
अगर
आपको कोई मसला समझ में न आए तो अप कमेंट में पुच सकते हैं मैं आपको पूरी जानकारी
दूंगा ।
Posted by – JM Islamic Official
2 Comments
Good
ReplyDeleteVery good
ReplyDelete